देश में जाति जनगणना एक ऐतिहासिक फैसला या वोट की राजनीति
“बात निकली है तो दूर तलक जाएगी।”
जी हां आपने सही सुना, देश में अब जाति जनगणना होगी। मुबारक हो अब हम विकसित भारत बनने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गए हैं। प्रधानमंत्री द्वारा यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया है जिसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए वैसे धन्यवाद देने वाली पार्टी की कमी नहीं एनडीए की सरकार ने यह फैसला उसे वक्त लिया जब देश में पहलगाम हमले की चारों ओर निंदा हो रही थी ।भाजपा को समर्थन देने वालीपार्टियों द्वारा भी सड़कों पर रैली निकालकर धन्यवाद दिया गया।
चलो अब तो साफ होकर जाएगा कि भारत में कितने प्रकार के लोग निवास करते हैं।वह किस-किस प्रजाति से संबंध रखते हैं । जो मानव प्रजाति विलुप्त के कगार पर होगी, उन्हें सरकार द्वारा आरक्षण देकर संरक्षित करने का काम किया जाएगा जो प्रजाति अपने उच्चतम संख्या में होगी उन्होंने देश के विकास में सहयोग या प्रतिनिधित्व का अवसर दिया जाएगा, क्योंकि उनकी प्रजाति की संख्या अधिक है, उन्हें अनुभव भी ज्यादा होगा पुरस्कार वह अच्छी तरह से लोगों का मार्गदर्शन कर सकेंगे कीअपनी प्रजाति का विकास और संवर्धन कैसे किया जाए।
अंग्रेजों द्वारा प्रथम बार जाति जनगणना 1881 में कराया गया था ।ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा जाति आधारित जनगणना करना समझ में तो आता है क्योंकि उन्हें देश पर राज् करना था, उसका शोषण करना था। लोगों को कैसेअपने वश में रखा जाए इसके उपाय भी करने थे । कुल मिलाकर हम गुलाम थे, उनका जो मन वह कर सकते थे। उन्हें देश के विकास के कोई सरोकार नहीं था जनगणना के इतिहास पर नजर डाली जाए तो, यह काफी पुरानी है, सैकड़ो वर्ष पूर्व भी जनगणना की जाती थी पर उस वक्त इसके मायने अलग थे।
सरकार जाति आधारित जनगणना करवाना चाहती है तो उसका कुछ सकारात्मक उद्देश्य ही होगा। विपक्षी पार्टी भी इसके समर्थन में है। राहुल गांधी ने तो बहुत पहले ही संसद में यह मुद्दा उठाया था कि जाति जनगणना होनी चाहिए, तब केंद्र सरकार ने यानी हमारे मोदी जी ने कहा था यह देश को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं हम देश के टुकड़े नहीं होने देंगे।तब हमें उन पर बड़ा गर्व हुआ था। वक्त-वक्त की बात है, दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।धर्मनिरपेक्ष देश मेंजब आपके प्रधानमंत्री ही जातिवाद को बढ़ावा देंगे तो राष्ट्र का निर्माण कैसा होगा इससे आप सभी भली-भांति परिचित है।
माफ कीजिएगा बार-बार अपने मुद्दे से भटक जा रहा हूं यह कहीं ना कहीं मेरे अंदर की चेतना कीआवाज है। जो रह कर बाहर निकल जा रही है। हां तो हम जनगणना की बात कर रहे हैं, sorry जाति जनगणना । यह फैसला अभी ही क्यों आया ? जनगणना तो 2021 में ही होनी थी, परंतु देर हो गई। चलो देर आए पर जबरदस्त आए। पहलगाम हमने से बाहर भी तो आना था, हमारे देश के चैनलों ने युद्ध का बिगुल तो भूख ही दिया था, मानोजंग हमारे देश की फौज नहीं, मीडिया के महावीर ही लड़ रहे थे। सच कहूं तो आज कोई न्यूज़ चैनल देखना किसी जंग को देखने से कम नहीं। मैं तो उन लोगों को वीर मानता हूं जो इन्हें घंटों देखने का साहस रखते हैं बहरहाल मीडिया वालों की अपनी मजबूरियां होती है, टीआरपी का प्रश्न है।अपने सौक पूरे करने के लिए उन्हें यह सब करना ही पड़ेगा, हां तो हम कहां थे।
जनगणना प्रत्येक देश के लिएआवश्यक होता है इससे सरकार अपने भविष्य की नीतियों को, इन्हीं सब आंकड़ों के अनुसार तैयार करती है।आज हम विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या बनने के कगार पर हैं, तो इसके लिए हमें अपनी योजनाओं को भी इसी के अनुरूप तैयार करना होगा। जनगणना के अनेकों फायदे हैं, इससे हम देश के आम लोगों की वास्तविक स्थिति का आकलन कर सकते हैं। हमारा देश विभिन्न धर्मो, समुदायों और जातीय आदि को मानने वाला देश है, जो अपनी आस्था और परंपराओं का निष्ठा से पालन करते हैं। लोग जीवन- यापन के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य करते हैं, जनगणना से सरकार को विभिन्न जातियों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता चलता है
देश के कई राज्य सरकारी जैसे बिहार कर्नाटक आदिअपने स्तर से जाति सर्वेक्षण कर रही है। बिहार जाति आधारित जनगणनासर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार बिहारमें ओबीसी की संख्या 63%के आसपास है।अब इससे आरक्षण की नई बात शुरू हो गई । यह तो होना ही था जाति आधारित जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है इसे यदि सकारात्मक रुख में लेकर चले, तो इससे देश और लोगों का फायदा ही होगा। नीति निर्माण और सामाजिक न्याय में इससे मदद मिलेगी ।वर्तमान स्थिति को देखकर यह कहना मुश्किल लगता है कि यह जनगणना लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन लाएगा। सरकार इसे अपनी योजनाओं में जाति जनगणना के अनुसार निर्णय लेगी। यह जाति जनगणना राजनीतिक पार्टियों केडाटा बनाने और उनके वोट बैंक को जाति आधारित बांटने के अलावा और कुछ करती नजर नहीं आ रही है।
हमारे संविधान निर्माता ने देश का संविधान बनाते समय अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावे किसी वर्ग या समुदाय को आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं की, क्योंकि वह देश को आज के राजनेताओं के मुकाबले बेहतर समझते थे । या यूं कहें तो उन्होंने कभी यह नहीं माना कि लोग आरक्षण के बैसाखी थाने जीने की इच्छा करेंगे।
राजनीतिक पार्टियों के अपने स्वार्थ और राजमोह के कारण यह देश भ्रष्टाचारऔर घोटालों की भेंट चढ़ गया। जिससे देश का विकास और उत्थान समय अनुरूप नहीं हुआ। यहां हमें शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करके, उन्हें शिक्षित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए था, लेकिन हमने इसके प्रति अपनी पूर्ण निष्ठा नहीं दिखाई।
संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की बात करें, तो उन्होंने भी जाति जनगणना को आवश्यक माना था। उन्होंने भी एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण की व्यवस्था की, उनकी नजर में जातिगत जनगणना केवल डेटा संग्रह पर आधारित थी वह चाहते थे कि उन पिछड़ी जातियों को मुख्य धारा में लाया जाए। जहां वह कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे सके,ना कि नेताओं के डाटाओं में ही सीमित हो कर रह जाए। जिसका समय-समय पर इस्तेमाल कर उनका वोट के रूप में शोषण किया जाए। डॉ अंबेडकर ने कहा था
“आप जाति की नींव पर कुछ भी नहीं बना सकते- ना राष्ट्र ,ना नैतिकता।”
अंबेडकर मानते थे कि जब तक जाति मौजूद है तब तक नैतिक सामाजिक और राजनीतिक न्याय असंभव है।
यह सोचने वाली बात यह है कि अंबेडकर जी भी जाति जनगणना करना चाहते थे पर सिर्फ अपने आंकड़ों के लिए ताकि उन आंकड़ों के हिसाब से न्याय संगत उपाय लागू किया जा सके। यह तब की बात है जब देश आजादी के पहले पायदान पर करवटें ले रहा था। उसे वक्त कि यह आवश्यकता थी परंतु आज इन इस 5G के युग में यह सिर्फ अपना हित साधने का एक पुराना किंतु नया तरीका है।
अब अब बहुत हो गया भाई साहब, लिखने को तो भाषण कितना भी चाहूं लिख सकता हूं परंतु अब बस हो गया एकअच्छे भारतीय नागरिक होने के नाते अपनी बातों को विराम देना चाहता हूं मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं की जाति जनगणना यह दो धारी तलवार की तरह है, जिसके एक तरफ से प्रयोग किया जाएतो यह देश का उत्थान, सामाजिक न्याय और देश को एक करके, उन्नति की राह पर ले जाएगा। मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हमारे प्रधानमंत्री ने एक साहसी कदम उठाया है, जो काम आजादी के बाद तुरंत हो जाना चाहिए था उसे करने में हमें 75 साल से भी ज्यादा का समय लग गया। मैंने अभी तक तलवार के एक धार की विशेषता हीं बताई है, परंतु दूसरे धार की बात करें तो यह सिर्फ देश का विनाशी करेगा जैसे यह हमें धर्म जातियों उच्च नीच आदि के खाई में धकेल देगा जिससे हमारे देश को टूटने में समय नहीं लगेगा। प्रत्येक राज्य में किसी न किसी जाति या धर्म के लोगों की संख्या में आबादी काम या ज्यादा होती ही है। यदि इसी आधार पर प्रत्येक राज्य या एक भूभाग पर लोग अपनी जाति या धर्म के आधार पर विशेष सुविधाएं मांगने लगे या एक अलग शासन पद्धति की मांग करने लगे जो विश्व के अनेक देशों में आज देखनेको मिलता है, तो वह दिनदूर नहीं जब हमारे स्थिति पुनः मुसको भाव: वाली कहानी की तरह होगी। इस देश को हमारे पूर्वजों ने अपने खून की एक-एक बूंद से सींचा है, सरदार वल्लभभाई पटेल ने कैसे देश को एक धागे में पिरोया इससे हम अनजान नहीं और कश्मीर से हमने क्या पाया ,इसका भी हमें मलाल नहीं लेकिन अब बस ।
“ राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाला ”

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